________________ मनुष्य की आयु खभावानुसार इसलिए की है कि वे निश्चित परमायु तक स्वाभाविक जीवन व्यतीत करते हुए मोक्ष-गति को प्राप्त हों। वैज्ञानिकों का मत है कि प्रकृति अपने स्वभावानुकूल मनुष्य को इसलिए उत्पन्न करती है कि उसके रचना कार्य में आए हुए रासायनिक संयोगों से उत्पन्न चेतना निश्चित समय तक स्वाभाविक रूप में वर्तमान रहे / इस मत में ईश्वर और जीव कोई शक्ति नहीं है / एक मात्र रासायनिक संयोग ही ईश्वर है, और उस संयोग से स्वतः उत्पन्न हुआ चैतन्य जीव है। इस चैतन्य को उसी तरह रहने का एक निश्चित समय है; और उसी समय को परमायु कहते हैं / मानव सृष्टि के समय पहला मनुष्य जितने समय तक जिया था, वही मानव-जाति की परमायु मानी गई। उससे कम समय में जो मरा उसपर कोई-न-कोई संघात हुआ समझा जाने लगा। हम लोग जीवन और मरण का कारण-विधि अथवा कर्म मानते हैं। यदि हम संघात और उसके उपस्थित करने वाले कारणों को उत्पन्न न होने दें तथा अपने को सर्वथा प्रकृति की स्वाभाविक प्रिय गोद में छोड़ दें, तो कोई कारण नहीं कि हमें हमारी जन्मसिद्ध प्राप्त परमायु न मिल सके। परन्तु मनुष्य समाज-बुद्धि-जैसी सम्पत्ति पाकर इतना बड़ा धनी और मदान्ध हो गया है कि परमात्मा के विधानों पर भी पानी फेरने का दावा रखता है और प्रकृति को अपनी दासी समझकर प्राणी-जगत् का स्वामी अपने ही को मान बैठा है / उसने स्वाभाविक जीवन को घृणित जीवन तथा