________________ वनस्पति-विज्ञान 28 उतनी मृत्यु नहीं होती। अभी कुछ ही वर्ष पूर्व सौ-सौ, सवा-सवा सौ वर्ष के बूढ़े अधिक संख्या में पाए जाते थे; वहीं आज अस्सी और नब्बे वर्ष के बूढ़े को भी देखकर आश्चर्य होता है। यदि हमारे देश में मृत्यु का यही भयावह क्रम रहा तो शीघ्र ही वह दिन आने वाला है, जब वृद्धों का नाम भी न रहेगा / आज जिन्हें हम प्रौढ़ कहते हैं, वे ही उस समय जर्जर वृद्धों की संख्या में रखे जायेंगे और आजकल के युवक प्रौढ़ माने जायेंगे / अब विचार करने का विषय यह है कि हमारे देश में ही इतनी मृत्युएँ होती हैं या अन्य देशों में भी / विदेशी देश स्थित रिपोर्टों से पता चलता है कि वहाँ पर इतनी अल्प आयु में इतनी बहुसंख्यक मृत्युएँ नहीं होती / इनके कारण का खोजना असाध्य नहीं है / जो व्यक्ति विवेकशील हैं, देश की दशा का पूरा ज्ञान रखते हैं, वे सहज ही इनके कारण को खोज सकते हैं। किन्तु देश में ऐसे लोगों की संख्या अत्यल्प है। अधिकांश में वे लोग निवास करते हैं, जो प्रत्यक्ष वस्तु के भी कार्य-कारण को सहज ही समझ जाने की बुद्धि रखते हुए, उसे उपेक्षा की दृष्टि से वहिष्कृत कर देते हैं; और ऐसा भाव प्रकट करते हैं कि मानों उनसे किसी प्रकार का सम्बन्ध ही नहीं है / _____ वास्तव में किसी भी कार्य में विशृंखलता उस कार्य के दोष से नहीं आती; बल्कि उसके बिगाड़ने वाले उसके निजी कर्म होते हैं। हिन्दू विश्वास के अनुसार परमात्मा ने मानव-सृष्टि अपने