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________________ 27 मनुष्य की आयु रहता है। परन्तु प्रत्येक शरीर में जब प्रकृति के विरुद्ध ये कार्य करते हैं, तब इन्हीं के न्यूनाधिक होने से रोग उत्पन्न होता है। तब ये ही वात, पित्त और कफ रोगोत्पादक दोष कहलाते हैं। जिन वात, पित्त, कफ को प्रकृति बाहर निकालती है, अर्थात् जो कफ मुँह से निकलता है और पित्त कड़वा, पीला वमन में दीख पड़ता है अथवा मल के साथ निकलता है एवं वायु निरसरण होता है, वे ही मलरूप कहलाते हैं। जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तब तक शरीर का प्रत्येक अणु चेतनावस्था में रहता है। किन्तु मृतक शरीर में यह वायु निकलकर वायुमंडल में मिल जाता है। इसी वायु को यम कहते हैं। ... मनुष्य की आयु सरकारी लेखा से प्रकट होता है कि भारत में मृत्यु-संख्या दिनोदिन भयानक रूप धारण करती जा रही है। पूर्वकाल में किसी का मरना सुनकर लोग आश्चर्य चकित हो जाते थे और अपने देश तथा जाति का अमंगल समझते थे। परन्तु मृत्यु की अधिकता के कारण आज देश के बड़े-से-बड़े व्यक्ति की भी मृत्यु की सूचना मिलने पर तनिक आश्चर्य नहीं होता / आधुनिक मृत्युलेखों से यह भी पता चलता है कि कितने बालक और युवती बियाँ प्रतिदिन काल-कवलित हो रही हैं। वृद्धों और प्रौढों की
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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