________________ 25 चिकित्सा-शास्त्र की पूर्णता रुधिर, पिता के वीर्य और आहार-द्वारा पहुंचते हैं। जैसा कि आयुर्वेद में लिखा है-मनुष्य का शरीर आत्मज, मातृज, पितृज और रसज है तथा चारों भूतों के चार प्रकार से शरीर में आने के कारण, शरीर षोड़श कला पूर्ण माना गया है / ये चारों महाभूत तीनों गुणों के भेद से तीन प्रकार के होते हैं। १-क्रियाशक्ति, २-विकास-शक्ति और ३-संकोच-शक्ति / क्रिया-शक्ति रखने वाला रजोगुण वायु कहलाता है। विकास-शक्ति रखने वाला अग्नि-पित्त कहलाता है। संकोच-शक्ति रखने वाला तमो. गुण पृथ्वी और जल रूप-कफ कहलाता है। सुश्रुत का कथन है विसर्गादामविक्षेपैः सोमसूर्यानिला यथा / धारयन्ति जगहेहं कफपित्तानिलास्तथा // ___वात, पित्त, कफ शरीर उत्पन्न होने से पहले ही शुक्राणु और रजाणु में तथा इनसे बने हुए कल्क रूप गर्भाणु में भी पाये जाते हैं / अणु कफ से घिरे रहते हैं / इसके मध्य में रङ्गीन विन्दु रूप पित्त होता है। इस मध्य विन्दु को अलग करनेवाला वायु है / वायु के विभक्त करने से अनेक अणु की वृद्धि होती है / इसी से शरीर की वृद्धि एवं सम्पूर्ण धातुओं की उत्पत्ति और वृद्धि होती है। इसी प्रकार सम्पूर्ण शरीरस्थ धातुओं के अणुओं में बाहर से कफ, बीच में पित्त और क्रिया करनेवाला वायु रहता है / परन्तु रुधिर पित्त का धातु है। इससे इसके अणु में कफ बाहर नहीं रहता / वाग्भट का कथन है