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________________ चिकित्सा शास्त्र की पूर्णता केवल प्रलाप मात्र ही कहा जा सकता है। प्राचीन आचार्य एवं चिकित्सक लोग शरीर-शास्त्र को चिकित्सा का एक विशेष अंग मानते थे। इसके अनेक प्रमाण हमारे वेद, शास्त्र, पुराण और तांत्रिक ग्रंथों में विद्यमान हैं। जिससे यह प्रमाणित है कि प्राचीन काल में आचार्यगण शरीर-विज्ञान को आयुर्वेद का परमोपयोगी और सर्वोत्कृष्ट अंग समझकर अपने-अपने ग्रंथों में उसका उल्लेख कर गए हैं। इसलिए प्रत्येक चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह शरीर-विज्ञान का यथा विधि आदरपूर्वक ज्ञान प्राप्त कर इस आयुर्वेदिक चिकित्सा का पुनरुद्धार करे। चिकित्साशास्त्र की पूर्णता कुछ लोगों का कथन है कि हमारे चिकित्सा शास्त्र में शरीर विषय है ही नहीं। यदि है तो वह अपूर्ण है। कुछेक की धारणा है कि हमारे आयुर्वेद का निदान तक अपूर्ण है / कुछ ऐसे भी पाए जाते हैं, जिनका कथन है कि निदान तो पूर्ण है; किन्तु चिकित्सा अपूर्ण है / परन्तु मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जितना पूर्ण हमारा आयुर्वेद है उतना पूर्ण अन्य चिकित्सा शास्त्र नहीं है / जो लोग इसे अपूर्ण कहते हैं, वे केवल अपनी अनभिज्ञता ही प्रदर्शित करते हैं। इससे आयुर्वेद की त्रुटि अथवा अपूर्णता नहीं सिद्ध हो सकती।
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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