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________________ वनस्पति-विज्ञान आतुरस्यान्तरात्मानं यो नाविशति रोगवित् / ज्ञानबुद्धि प्रदीपेन न स रोगान् चिकित्सति // - जो चिकित्सक रोगी के शरीर का हाल-ज्ञान और बुद्धि के प्रकाश से नहीं जान सकता, वह चिकित्सा नहीं कर सकता। ___ शास्त्र में शरीर का ज्ञान रखने की प्रधानता दी गई है। सुश्रुत में वैद्य को शारीरिक शास्त्र में चतुर होना आवश्यक बतलाया गया है / प्रत्यक्ष और अनुमान आदि से सन्देह को दूर कर चिकित्सा करनी चाहिए। प्रत्यक्ष से अनुमान किया हुआ और शास्त्र द्वारा निश्चय किया हुआ-यह दोनों विषय सोने में सुगन्ध के समान हैं। कुछ अल्पज्ञ वैद्य कहते हैं कि शरीर-शास्त्र का ज्ञान उन्हीं के लिए आवश्यक है, जो शल्य-चिकित्सक हैं / परन्तु यह नितान्त भ्रमात्मक और हास्यास्पद है / अनेक रोगों के निदान में आशय, अग्नि और हृदय आदि के ज्ञान की चिकित्सक को परमावश्यकता है। इनके ज्ञान बिना चिकित्सा का ज्ञान अपूर्ण ही रहता है / चरकाचार्य का कथन है शरीरं सर्वथा सर्व सर्वदा वेद यो भिषक् / आयुर्वेदं समासेन वेदलोक सुखप्रदम् // जो वैद्य सब प्रमाणों-द्वारा शरीर-शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर चुका है, वही लोक में सुखदायक आयुर्वेद का ज्ञाता है। __ बहुत लोगों का कथन है कि प्राचीन समय में वैद्य केवल नाड़ी देखकर ही रोग का पूर्ण परिज्ञान कर लेते थे। यह कथन
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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