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________________ मानव शरीर के तत्व यह सिद्ध होता है कि यथार्थ मात्रा में रक्त के न मिलने से मनुष्य की चेतना शक्ति क्षीण हो जाती है तथा वह कृशकाय दृष्टिगोचर होता है। अंशतः उसका जीवात्मा भी क्षीण हो जाता है / कम और अधिक बल तथा दीर्घ और अल्प आयु होने का भी यही कारण है। कुछ लोगों का जीवात्मा एकाएक नष्ट हो जाता है और कुछ लोगों का व्याधि से जर्जर होने पर क्रमशः चेतना शक्ति के क्षीणातिक्षीण होने पर विनष्ट होता है / ___ आत्मवादी भी शरीर के इस क्रम को स्वीकार करते हैं / तथापि वे यह मानते हैं कि शरीर का भोग करने वाला आत्मा ही है / वही परमात्मा रूप है। पुरुष के वीर्य और स्त्री के आर्तव में निवासकरने वाली चेतना शक्ति भी गर्भ में प्रवेश करती है / गर्भ में कोई नवीन जीव नहीं प्रकट होता / वीर्य और रज का जो जीव होता है, वही गर्भाशय में रहकर परिपुष्ट होता और एक नवीन जीव में परिणत हो जाता है। आत्मा शरीर का राजा है और न्यायाधीश की भाँति निवास करता है। बुद्धि तथा चित्त उसके मंत्री के रूप में रहते हैं / जब तक बुद्धि और चित्त-वृत्ति अवाधित गति से शान्तिपूर्वक रहती हैं, तभी तक जीवात्मा अधिक समय तक सुखोपभोग कर सकता है / किन्तु जब उनकी शान्ति नष्ट हो जाती है, तब आत्मा कष्ट का अनुभव करता है। उसी समय शरीर में अनेक लक्षण रोग के दीख पड़ने लगते हैं, और आत्मा राज्यभ्रष्ट नृपति की भाँति दूसरे शरीर-राज्य में शरण लेने की चेष्टा
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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