________________ वनस्पति-विज्ञान शक्ति अदृष्ट रूप से निवास करती है। वही शक्ति जीवात्मा है। जीवात्मा के विषय में भी अनेक मत-मतान्तर हैं। कुछ लोगों का कथन है कि जीवात्मा शरीर के उन तत्वों से भिन्न पदार्थ है / दूसरे लोगों का कथन है कि शरीर में परिचालित रासायनिक क्रिया से ही यह चेतना शक्ति उत्पन्न होती रहती है। पदार्थवादियों के मत से शरीर में जो चेतना शक्ति है, वह रासायनिक क्रिया से उत्पन्न हुई एक प्रकार की शक्ति विशेष है / अर्थात् जब तक रासायनिक क्रिया चलती रहती है, तब तक शरीर की चेतना शक्ति बनी रहती है, और जब यह रासायनिक क्रिया बंद हो जाती है, तब चेतना शक्ति भी बंद हो जाती है। यह चेतना या जीव, शरीर से भिन्न पदार्थ नहीं है / शरीर का रक्त ही जीवन है / जब तक रक्त नियमित रूप से परिभ्रमण किया करता है, तब तक जीवन का अन्त नहीं होता। किन्तु रक्त का संचालन किसी दूसरे चेतना तत्त्व के आधार पर होता है। इसी तत्व को प्राणवायु कहते हैं, और इसे ही ऑक्सीजन भी कहते हैं। यही वायु रक्त को शुद्ध करता है; और शरीर प्राण को धारण किए रहता है / शारीर-क्रियासंचालन के लिए इस प्राणवायु की जितनी मात्रा में आवश्यकता है, उतनी मात्रा में यदि वह न मिले तो शरीर की चेतना शक्ति निश्चय ही कम होने लग जाती है / अन्त में वही मृत्यु का कारण बन जाती है। यह कहा जाता है कि जिन मनुष्यों में जीवन का तत्त्व कम हो जाता है, उनमें रक्ताल्पता भी हो जाती है / इससे