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________________ वनस्पति-विज्ञान करने लगता है। जीवात्मा शरीर का भोक्ता है / शरीर के. सुखी रहने पर वह सुखी और दुखी होने पर दुखी रहता है / शरीर ही आत्मा के लिए बन्दी-गृह है और वही उसका स्वर्गीय भवन भी है। शरीर ही आत्मा का उत्थान और पतन कर सकता है। जिसे लोग मोक्ष कहते हैं, उसका प्राप्त-द्वार शरीर ही है। अतएव स्वस्थ शरीर के द्वारा ही संसार की अतीव दुरूह वस्तु भी प्राप्त हो सकती है। __जिसे हम लोग मोक्ष कहते हैं, उसका भोक्ता जीवात्मा ही है। किन्तु वह मोक्ष शरीर निवासी जीवात्मा को ही प्राप्त हो सकता है। इस दुर्लभ मानव शरीर के सम्बन्ध बिना किसी भी आत्मा को मोक्ष नहीं मिल सकता / मोक्ष का अर्थ है-संसार के सम्पूर्ण उपद्रवों से त्राण पाना। यह छुटकारा आत्म को शरीर की उन्नति से ही प्राप्त हो सकता है / जब स्वस्थ शरीर रहता है तभी आत्मा मोक्ष के लिए निश्चित होकर प्रयत्न करता है / अतएव हमें पहले अपनी शारीरिक उन्नति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। उसके बाद आत्मोन्नति तो स्वल्प प्रयास से ही हो सकती है। किन्तु जब शरीर के विकास, पवित्रता और रक्षण पर ध्यान नहीं दिया जाता तब आत्मा उस शरीर का परित्याग कर अन्यत्र चला जाता है। इस प्रकार आत्मा और शरीर के योग को आयुष्य कहते हैं। आत्मा शरीर में जितने काल तक रहता है, उतने ही काल को
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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