________________ वनस्पति-विज्ञान अति सूक्ष्म रज-कणों से मिट्टी का पिंड बनता है / उस पिंड से वनस्पति उत्पन्न होती है और उस वनस्पति के आहार से हमारे प्राण की रक्षा होती है। इसी वनस्पति के आहार के प्रभाव से हमारा जीवात्मा-परमात्मा तक बन सकता है / अर्थात् वनस्पति का सात्विक आहार ही हमारे मन-मस्तिष्क को शान्त कर हमें उस महाप्रभु के चरणों तक पहुँचने की शक्ति प्रदान करता है। रज ही मिट्टी है, मिट्टी ही वनस्पति रूप है और वनस्पति हो प्राणी रूप है। इसी प्रकार सष्टि का क्रम चलता है। सृष्टि में जितने पदार्थ दीख पड़ते हैं, उन सबों का मूलतत्त्व एक आदि महातत्त्व है / जिसमें से वे उत्पन्न हुए हैं। यह आदि महातत्त्व भी अनादि काल से चलता आया हुआ एक सर्वव्यापी; किन्तु अनादि-तत्त्व ही समझना चाहिए। आधुनिक रसायनाचार्य सब पदार्थों की उत्पत्ति कुछ मूलतत्त्वों में से निकली हुई बतलाते हैं / इन मूल तत्त्वों को वे अस्सी से भी अधिक संख्या में बतलाते हैं / भारतीय महर्षियों ने केवल पाँच ही तत्त्व माने हैं-पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश। आधुनिक रसायनाचार्यों के अस्सी मूलतत्त्वों को आर्य मनीषियों ने केवल पाँच ही तत्त्व के अन्तर्गत माना है / आजकल इन अरसी तत्त्वों में से नवीन-नवीन तत्त्व अनुसन्धान किए जा रहे हैं। अभी कुछ ही वर्ष पूर्व किसी पाश्चात्य विद्वान ने 'रेडियम' का श्राविकार किया है। किन्तु इस पदार्थ में भी उन अस्सी परमा