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________________ पंचतत्त्व णुओं का मूल तत्त्व नहीं है / उन लोगों का कथन है कि प्राणियों और वनस्पतियों के सूक्ष्म अणुओं में जो जीवन शक्ति है उन अणुओं में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन, हाइट्रोजन, फॉस्फरस और सल्फर आदि तत्त्व अमुक परिमाण में होते हैं; और इन तत्त्वों के रसायनधर्म से वनस्पति तथा प्राणीवर्ग की उत्पत्ति होती है। परन्तु आजतक वे विज्ञानशास्त्री स्वयं अपने कृत्रिम उपायोंद्वारा उसी परिमाण और मात्रा में उन ऑक्सीजन आदि पदार्थों को मिलाकर अबतक कोई भी जीवन तत्त्व उत्पन्न नहीं कर सके / इससे यह सिद्ध होता है कि इस रसायनधर्म के संयोग अथवा वियोग का सृष्टि के. संचालन में कोई हाथ नहीं है, बल्कि एक तीसरी ही शक्ति इसका संचालन करती है। उस महान शक्ति के बिना एक भी रासायनिक क्रिया नहीं बन सकती। इस सष्टि की अनेक बार उत्पत्ति, विकास और संहार हो चुका है। इन सब कारणों पर विचार करके ही आधुनिक रसायनशास्त्री आर्य सिद्धान्तों की ओर मुके हैं, और वे अब मानने लगे हैं कि एक अनादि तत्त्व में से क्रमशः पंच महातत्त्व निकले हैं। आजकल के रसायनशास्त्रियों का यह सृष्टि-क्रम भारतीय आर्य मनीषियों के पंच महातत्त्वों से मिलता है / इस प्रकार भिन्न-भिन्न स्थिति में इस विश्व में जितने पदार्थ दीख पड़ते हैं, वे इस ब्रह्मांड के प्रकृति द्रव्य है। ब्रह्मांड के ये प्रकृति द्रव्य भिन्न-भिन्न शक्तियों के भिन्न-भिन्न योग तथा धर्म से काम करते हैं, जिसे रासायनिक-रसायन धर्म
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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