________________ भाँग सं० विजया, हि० भाँग, ब० सिद्धि, म० भाँग, गु० भाग्य, तै० जनपरितुलु, अ० कन्नवकेन, फा० किन्नाविष, अँ० इण्डियन हेम्प-Indian Remp, और लै० कनाविस सेटिवाCannabis Sativa. विशेष विवरण-भाँग का पौधा तीन-चार हाथ ऊँचा होता है / गाँजा और भाँग दोनों एक ही जाति के हैं / इसके पत्ते लम्बे, पतले और अनीदार होते हैं। उसमें नीले फूल के गुच्छे होते हैं। इसका फल बहुत छोटा होता है। इसके दाने मखमली फूल के दाने-जैसे होते हैं / यह दो जाति का होता है / १-पुरुष और २-स्त्री। पुरुष-जाति के पत्ते जो काम में लाए जाते हैं, उसे ही भाँग कहते हैं / स्त्री-जाति के पौधे जो काम में लाये जाते हैं, उसे गाँजा कहते हैं। गाँजा के ही पेड़ से नीले रंग का रस निकलता है / उस रस को चरस कहते हैं / यह कामोद्दीपक होता है / इसे पाक, माजूम और याकूती में छोड़ते हैं / यूनानी चिकित्सक इसे प्रमेह और अंत्रवृद्धि के लिए उपयोगी बतलाते हैं / गुण-भंगा कफहरी तिक्ता ग्राहिणी पाचनी लघुः / / तीक्ष्णोष्णा पित्तला मोहमदवाग्वन्हिवर्द्धिनी ॥–भा० प्र० भाँग-कफनाशक, तीती, प्राही, पाचक, हलकी, तीक्ष्ण, उष्ण, पित्तकारक तथा मोह, मद, वासिद्धि और अग्निवर्द्धक है /