________________ बनस्पति-विज्ञान 248 बट-शीतल, भारी, प्राही, वर्ण्य, कषैला तथा कफ, पित्त, व्रण, विसर्प, दाह और योनिदोषनाशक है। विशेष उपयोग (1) नख और दाँत के विष परबट, शमी और नीम की छाल घिसकर लगानी चाहिए / - (2) प्रमेह में-बट के अंकुर का काढ़ा बनाकर पीएँ / . (3) बिच्छू के विष पर-बट का दूध लगाएँ। (4) गर्भधारण के लिए-बट के एकदम नए और कोमल पत्तों को इक्कीस गोली बनाकर प्रतिदिन एक गोली घी के साथ खानी चाहिए। (5) कृमिरोग में-बट के अंकुर का रस पीएँ / (6) धातुपुष्टि के लिए-बंट का दूध बतासे में खाएँ। (7) ज्वर में दाह हो, तो-बट के अंकुर का रस पीएँ। (8) अतीसार में-बट का अंकुर चावल के धोअन के साथ पीसकर और मट्ठा मिलाकर पीना चाहिए। (8) रक्तपित्त में-बट के अंकुर के कल्क में शहद और मिश्री मिलाकर खाना चाहिए। पलाश स० पलाश, हि० पलाश, ढाक, ब० पलाशगाछ, म० पलस, गु० खाखरा, क० मुत्तलु, ता० परशन, तै० मातुकाचेटु, अ