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________________ बनस्पति-विज्ञान 230 . मधुर गंध निकलती है। उसी फूल में हरे निमकौड़े लगते हैं। पकने पर ये पीले पड़ जाते हैं। उसके भीतर से मीठा और गाढ़ा रस निकलता है। फल के भीतर एक बीज निकलता है / फागुन या चैत में इसमें मुलायम पत्ते निकलते हैं। उस समय यह बड़ी सुन्दर मालूम पड़ती है / निमकौड़े के भीतर के बीज से तेल निकलता है / इसके फूल को लोग घी या तेल में भूनकर खाते भी हैं / नीम में से एक प्रकार का गोंद निकलता है। यह कड़वा नहीं होता; बल्कि मीठा होता है। नीम की छाल और गोंद रंग के काम आती है / नीम जितनी महत्वपूर्ण वस्तु संसार में दूसरी नहीं है। इसका संपूर्ण अंग काम आता है। गुण-निम्दधृक्षो लघुः शीतस्तिक्तो ग्राही कटुः स्मृतः / अग्निमांद्यकरश्चैव . व्रणशोधनकारकः // शोथपाककरो बाले हितो रुद्यो मतो बुधैः / कृमिवान्तिव्रणकफशोफपित्तविषापहः // वातं कुष्ठं च हृाहं श्रमं कासं ज्वरं तृषाम् / अरुचि रक्तदोषं च मेहं चैव विनाशयेत् ॥-नि० र० नीम-हलका, शीतल, तीता, ग्राही, कड़वा, अग्निमांद्यकारक, वणशोधक; शोथ और पाक को करनेवाला; बालकों को हितकारक तथा कृमि, वान्ति, व्रण, कफ, शोथ, पित्त, विष, वात, कुष्ठ, हृदय की दाह, श्रम, कास, ज्वर, तृषा, अरुचि, रक्तदोष और प्रमेहनाशक है।
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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