________________ वनस्पति-विज्ञान 220 गुण-विदाहि दीपनं रूममनेत्र्यं मुखशोधनम् / अवृष्यं बहुविटकं च पित्तरकप्रदूषणम् ॥-भा० प्र० भूतृण-दीपक, रूखा, विदाहकारक, मुखशोधक, अवृष्य, बहुत मल निकालनेवाला, नेत्रों को अहितकारक तथा पित्त एवं रक्त को दूषित करनेवाला है। विशेष उपयोग (1) वमन रोकने के लिए-भूतृण की राख, शहद के साथ देनी चाहिए / (2) मुख की विरसता पर-भूतृण और मिश्री का काढ़ा पीना चाहिए। (3) श्वास पर-भूतृण और हल्दी का कोयला, शहद के साथ चाटना चाहिए। कटाई सं० बृहती, हि० कटाई, ब० व्याकुड, म० थोरडोरली, गु० उभी भोरिंगणी, क० हेग्गुलु, ता० चेरुचुंट, तै० पेहामुलंगा, अ. वालुंजान जंगली, फा० उस्तरगार, और लै० सोलेनम् इंडिकम्Solanum Indicum. विशेष विवरण-कटाई का क्षुप जंगलों में होता है। इसमें काँटे बहुत कम होते हैं / इसके पत्ते बैगन के पत्ते के समान होते हैं / फल बड़े-बड़े आँवले के समान चितेले और पीले रंग के होते हैं / यह कई प्रकार की होती है।