SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 219 भूतृण विशेष- विवरण-पिठिवन पश्चिम और बंगदेश में विशेष होता है। किन्तु दक्षिण देश में इसका पता भी नहीं चलता। इसके पत्ते गोल और बेलदार होते हैं / फूल-गोल, सफेद और जटायुक्त होता है। विशेषकर इसकी जड़ का ही व्यवहार करना चाहिए / किन्तु स्वल्पमल होने से प्रायः पंचांग का ही व्यवहार होता है / गुण-गृष्टिपर्णी कटूष्णा च तिक्तातीसारकासनुत् / ___ हन्ति दाहज्वरश्वासरक्तातीसारतृड्वमीम् ॥-भा० प्र० पिठिवन-कड़वा, गरम, तीता तथा अतीसार, कास, दाह, ज्वर, श्वास, रक्तातीसार, तृषा और वमननाशक है / विशेष उपयोग (1) अतीसार में-पिठिवन की जड़, बेल की गुद्दी और सौंफ का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए / (2) दाह पर-पिठिवन की पत्ती पीसकर लगाएँ / (3) रक्तातीसार में-पिठिवन के काढ़े में शहद मिलाकर पीना चाहिए। भूतृण सं० हि भूतृण, गु० भूत्रण, क० परिमलदगंजीणं, और लै० ऐंड्रोपोगम सिट्रेटस-Andropogam Citratus. विशेष विवरण-भूतृण जंगल और बाग-बगीचों में बहुतायत से उत्पन्न होता है, और इसमें गुनछे से लगते हैं और उनमें बहुत-से तथा बहुत छोटे-छोटे बीज होते हैं /
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy