________________ घीकुवार 205 विशेष विवरण-घीकुवार का क्षुप होता है। यह खारी, रेतीली तथा नदी-तट की जमीनों पर विशेष होता है। इसके पट्टे लम्बे और मोटे होते हैं / प्रत्येक पट्टे के दोनों ओर काँटे होते हैं। इसके भीतर से चिकना, लवाब-जैसा गूदा निकलता है। पट्टे के छोर अनीदार होते हैं / घीकुवार के बीच से डंठल निकलता है / उस डंठल में लाल रंग का फूल निकलता है। घीकुवार के रस से एलुवा बनाया जाता है। गुण-गृहकन्या हिमा तिक्ता मदगन्धिः कफापहा / पित्तकासविषश्वासकुष्ठम्नी च रसायनी ॥-रा: नि० घीकुवार-शीतल, तिक्त, मद के गन्धवाली तथा कफ, पित्त, कास, विष, श्वास और कुष्ठनाशक एवं रसायन है / गुण-तन्मध्यदण्डो मधुरः कुमारीसदृशो गुणैः / विशेषात्कृमिपित्तघ्नः पुष्पमस्य गुरु स्मृतम् // वातं पित्तं कृमीश्चैव नाशयेदिति कीर्तितम् / —शा० नि० ___घीकुवार के भीतर का डंठल-घीकुवार के समान ही गुणों वाला है ; किन्तु यह मधुर तथा विशेष करके कृमि और पित्तनाशक है / घीकुवार का फूल-भारी तथा वात, पित्त और कृमिनाशक है। _ विशेष उपयोग (1) विषम ज्वर में घीकुवार का लवाब दस माशे तक गरम पानी के साथ सेवन करना चाहिए।