________________ वनस्पति-विज्ञान 204 (5) पित्तजप्रमेह और मूत्राघात में-गोखुरू का हरा पेड़ धोकर पानी में भिगो दिया जाय और थोड़ी देर के बाद हिलाने से पानी में उसका लवाब निकल पाएगा; उस लवाब में मिश्री और जीरा का चूर्ण मिलाकर सात दिनों तक पीना चाहिए / (6) आमवात में-गोखुरू और सोंठ का काढ़ा पीएँ / (7) इन्द्रलुप्त पर-गोखुरू, तिल का फूल, शहद और घी, समान भाग पीसकर लेप करना चाहिए। (8) प्रसव के बाद का शूल-गोखुरू, मुलेठी और मुनक्का; दूध के साथ पीसकर पीना चाहिए / (8) पथरी पर-गोखुरू का चूर्ण और शहद एक साथ मिलाकर भेड़ के दूध के साथ सेवन करना चाहिए / (10) मूत्रकृच्छ में-गोखुरू का चूर्ण और मिश्री; दूध के।साथ सेवन करना चाहिए। (11) वीर्यवृद्धि के लिए-गोखुरू और बरियरा के के बीज का चूर्ण; मिश्री और दूध के साथ लेना चाहिए / घीकुवार सं० ब० घृतकुमारी, हि० घीकुवार, म० कोरफड, गु० कुवार, क० लोयिसर, तै० विरजाजितोगे, अ० मुसबर, फा० दरखतेसिन्न, अँ० बाइँडोज़ अलोज-Barbadoes Aloes, और लै० अलोइबाबडेन्स-Aloebarbadense.