________________ घनस्पति-विज्ञान 206 (2) अजीर्ण में घीकुवार का लवाब, हल्दी का चूर्ण मिलाकर खाना चाहिए। (3) ऊर्द्धवास में-घीकुवार और अडूसा को सेंककर रस निकाला जाय और उसमें शहद, पीपर और भूनी लौंग का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए। (4) कफविकार में घीकुवार के रस में शहद, सेंधानमक और हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए। (5) आँख आने पर-घीकुवार के लवाब में भूनी फिटकिरी और अफीम मिलाकर तथा गरम करके लगाना चाहिए। (6) स्तनरोग में-घीकुवार की जड़ और हल्दी पीसकर लगाना चाहिए। . (7) आग से जल जाने पर-घीकुवार का गूदा लगाना चाहिए। (8) घाव में कीड़ा पड़ जाने पर-घीकुवार की जड़ गोमूत्र के साथ घिसकर दिन में तीन बार लगानी चाहिए / (8) कर्णदाह में-घीकुवार का रस छोड़ें। (10) कामलारोग में-घीकुवार के रस में घी मिलाकर नास लेनी चाहिए। (11) उदरशूल में-घीकुवार के गूदा में कालानमक मिलाकर खाना चाहिए। -