________________ कुश 201 गुण-दर्भद्वयं त्रिदोषघ्नं मधुरं तुवर हिमम् / ___मूत्रकृच्छ्राश्मरीतृष्णावस्तिरुक्प्रदरास्वजित् ॥-भा० प्र० कुश और दर्भ-त्रिदोष नाशक, मधुर, कषैला, शीतल तथा मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, तृषा, वस्ति की पीड़ा, प्रदर और रक्तविकार नाशक है। गुण-x x x x x दर्भमूलं तु शीतलम् / रुच्यं च मधुरं रक्तज्वरतृटश्वासकामलाम् // पित्तं च नाशयत्येवं मुनिभिः परिकीर्तितम् ।-नि० र० कुश की जड़-शीतल, रुचिकारक, मधुर तथा रक्त, ज्वर, तृषा, श्वास, कामला और पित्तनाशक है। विशेष उपयोग (1) प्रदर में-कुश की जड़, चावल की धोवन के साथ पीसकर तथा जीरा का चूर्ण और मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। (2) मूत्रशुद्धि के लिए -कुश की जड़ का काढ़ा पीएँ / (3) वातज्वर में-कुश को जड़ और गोखुरू के काढ़े में मिश्री और शहद मिलाकर पीना चाहिए / (4) दाह पर-कुश की जड़ पीसकर लगाना चाहिए / (5) मासिकधर्म के लिए-कुश की जड़, कालातिल, पुराना गुड़ और आदी का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए /