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________________ गोखुरू सं० गोक्षुर, हि० गोखुरू, ब० गोखरि, म० सण्टे, गु० गोखरु, क० वेडितीसराटीदोडुनेग्गिलु, तै० पालरु, अ० वजरुलखस्क, फा० तुख्मेखारखस्क, और लै० पेडेलेम्मुरेक्स-Pedalum Murx. विशेष विवरण-गोखुरू दो जाति का होता है। १छोटा और २-बड़ा / कोई लोग बड़े को पहाड़ी और छोटे को देशीभी कहते हैं। पहाड़ी गोखुरू का पेड़ होता है। इसका फूल पीला और सफेद होता है / पत्ते भी थोड़े. सफेद होते हैं / फल के ऊपर बराबर काँटे होते हैं। छोटे गोखुरू का छत्ता होता है। इसके पत्ते चने के पत्ते के समान होते हैं / फूल पीला होता है। इसके फल में छः काँटे होते हैं। इसकी मात्रा छः माशे तक की दी जाती है। यह बड़ा पौष्टिक होता है। इसका उपयोग औषध के लिए होता है। गुण-गोक्षुरः शीतलो बल्यो मधुरो बृहणो मतः / बस्तिशुद्धिकरो घृष्यः पौष्टिकश्च रसायनः // अग्निदीप्तिकरः स्वादुमूत्रकृच्छूश्मरीहरः / दाहमेहश्वासकासहृद्रोगार्शविनाशनः // वस्तिवातं त्रिदोषं च कुष्ठं शुलं च नाशयेत् / -शा० नि० गोखुरू-शीतल, बल्य, मधुर, बृंहण, वस्ति को शुद्ध करने
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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