________________ वनस्पति-विज्ञान 198 जाते हैं / कपास की खेती भारतवर्ष में प्रायः सभी लोग देहातों में करते हैं / कपास के फूल पीले और बीच में लाल होते हैं / फूल गूलर के समान तिकोने होते हैं। इन्हीं फूलों के भीतर कपास होती है। यह चरखी में श्रओटी जाती है, और उसमें से जो बीज निकलता है, उसे बिनौला कहते हैं / इसका पत्ता एरंड के पत्ता के समान पाँच ओर कटा होता है। किन्तु उनकी अपेक्षा वह छोटा होता है। एक काली कपास भी होती है। उसका फूल और बिनौला दोनों काला होता है / एक प्रकार की नरयावाडी कपास भी होती है / इसके पेड़ बड़े-बड़े होते हैं, और सब चीजें कपास के ही समान होती हैं। कपास ही हमारी लज्जा रखती है। भारतवर्ष में इसका बहुत बड़ा व्यवसाय होता है। वस्त्र आदि इसीसे बनते हैं। गुण-कार्पासकी लघुश्चोष्णा मधुरा वातनाशनी / तत्पलाशं समीरनं रक्तकृन्मूत्रवर्द्धनम् // तत्कर्णपिडिकानादपूयास्रावविनाशकम् / तत्बीजं स्तन्यदं वृष्यं स्निग्धं कफहरं गुरु ॥–भा० प्र० कपास-हलका, गरम, मधुर और वातनाशक है / कपास का पत्ता-वातनाशक, रक्तवर्द्धक, मूत्रकारक तथा कर्ण की पीड़ा, शब्द और पूय विनाशक है / कपास का बीज-दूध को बढ़ाने वाला, वृष्य, स्निग्ध, कफनाशक और भारी है। गुण-भारद्वाजी हिमा रुच्या व्रणशस्त्रक्षतापहा ।-शा० नि०