________________ 185 ___गुंजा (3) उपदंश में-करंजा के पत्ते के रस में घी मिलाकर सात दिनों तक पीना चाहिए / भात और घी खाना चाहिए / (4) कृमि पर-करंजा के पत्ते के रस में आमाहल्दी और पित्तपापड़ा पीसकर लेप करना चाहिए। ____(5) वातगुल्म में-भुने हुए करंजा का चूर्ण गिलोय के रस के साथ खाना चाहिए। (6) ज्वर में करंजा के पत्ते का रस चार तोला, दो रत्ती भुनी हींग मिलाकर सेवन करना चाहिए। विषमज्वर के अतिरिक्त यह सभी में विशेष लाभदायक है / (7) आमवात में आधे कच्चे करंजा को भूनकर उसके एक माशा चूर्ण में मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए / . 'गुंजा सं० हि० म० गुजा, ब० कुँच, गु० चणोठी, क० गुलगुंजे, 'ता० करिन, तै० गुलविंदे, अ० हब, फा० चश्मेखरूस, अँ० वीड ट्री-Bead Tree, और लै० एब्रेस प्रिटोरियसAbrus Precatorius. विशेष विवरण-गुजा की लता जंगलों में विशेष पाई जाती है / इसके पत्ते इमली के पत्ते के समान होते हैं / पत्ते खाने में मीठे मालूम पड़ते हैं। इसके फल और फूल सेम के समान