________________ बनस्पति-विज्ञान 186 होते हैं। उन्हीं फलियों में गुजा होती है। यह दो प्रकार की होती है / १-सफेद, और २-लाल। लाल के मुखपर कालापन होता है ; किन्तु सफेद का मुख सफेद ही होता है। यह उपविष है / इसके सम्पूर्ण अंगों का व्यवहार औषधि के लिए होता है। गुण-गुञ्जाद्वयं स्वादु तिक्तं बल्यं चोष्णं कषायकम् / त्वच्यं केश्यं च रुच्यं च शीतं वृष्यं मतं बुधैः // नेत्ररोगं विषं पित्तमिन्द्रलुप्तं व्रणं कृमीन् / राक्षसग्रहपीड़ां च कण्डू कुष्ठं कर्फ ज्वरम् // मुखशीर्षरुजं वातं भ्रमं श्वासं तृषं तथा / मोहं मदं नाशयति बीजं वान्तिकरं मतम् // शूलनाशकरं मूलं पणं च विषनाशकम् / श्वेतगुंजाविशेषेण वशीकरणकृन्मता ॥–शा० नि० दोनों प्रकार की गुंजा-स्वादिष्ट, तीती, बल्य, उष्ण, कषैली, त्वच्य, केश्य, रुच्य, शीतल, वृष्य तथा नेत्र-रोग, विष, पित्त, इन्द्रलुप्त, व्रण, कृमि, राक्षसवाधा, ग्रहपीड़ा, खुजली, कुष्ठ, कफ, ज्वर, मुख एवं सिर की पीड़ा, वात, भ्रम, श्वास, तृषा, मोह और मदनाशक है। -गुंजा का बीज-वान्तिकारक तथा शूलनाशक है / गुंजा की जड़ और पत्ते-विषनाशक हैं / सफेद गुंजा-विशेष करके वशीकरण करनेवाली कही गई है। विशेष उपयोग (1) आधाशीशी पर-गुंजा की जड़ पानी में घिसकर नास लेनी चाहिए /