________________ वनस्पति-विज्ञान 184 समान लगते हैं / किन्तु फलों में इतने विशेष काँटे होते हैं कि कहीं तिल रखने का स्थान नहीं मिलता / उसमें चार-पाँच बड़े-बड़े दाने निकलते हैं / इन्हीं को करंजा कहते हैं। ऊपर से उनका छिलका राख के रंग का होता है / किन्तु भीतर सफेद रंग की गिरी निकलती है / इसका फूल गुच्छों में और पीले रंग का होता है / प्रत्येक फूल में पाँच पखुड़ियाँ होती हैं। उनमें चार फॉक फीके रंग की होती हैं / एक बीच वाला लाल रंग का होता है / इसके बीज में पुरुष-पराग और स्त्रीकेसर होती है / इसकी गुद्दी कड़वी होती है। इसकी मात्रा एकमाशा तक की है / गुण-कण्टयुक्तः करंजस्तु पाके च तुवरः कटुः / ग्राहकश्चोष्णवीर्यः स्यात्तिक्तः प्रोक्तश्च मेहहा // कुष्टा व्रणवातानां कृमीणां नाशनः परः / पुष्पंतु चोष्णवीर्य स्यात्तिक्त वातकफापहम् // -शा० नि० करंजा-पाक में कषैला; कड़वा, प्राही, उष्णवीर्य, तीता तथा प्रमेह, कुष्ठ, अर्श, व्रण, वात और कृमिनाशक है / करंजा का फूल-उष्णवीर्य, तीता और वातनाशक है / विशेष उपयोग (1) क्षय, प्रसूत और उदरशूल मेंभूने हुए करंजा का चूर्ण घी के साथ खाना चाहिए / अथवा लहसुन, हींग और सेंधानमक के साथ खाना चाहिए / (2) शोथ पर-करंजा, आक और एरंड का पत्ता पीस और गरम करके तीन दिनों तक लेप करना चाहिए /