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________________ 183 करंजा (7) आधाशीशी में-करंज का बीज, गुरिच के रस में घिसकर नस्य लेनी चाहिए। (8) उरुस्तम्भ में-करंज की जड़ अथवा छाल पीस और गरम करके लेप करना चाहिए / (8) वमन के लिए-करंज का बीज भूनकर खाएँ / (10) विरेचन के लिए-करंज और अमिलतास का काढ़ा पीना चाहिए। (11) आमवात में-करंज का पाँच बीज गोमूत्र के साथ पीसकर लेना चाहिए। 99 / करंजा सं० कण्टकरंज, हि० करंजा, ब० काँटाकरंज, म० सागरगोटा, गु० कांकच, क. करंजभेदु, तै० कचकाई, अ० अक्तमक्त, फा० खाय, अँ० बोण्डकनट-Bonducnut, और लै० सिसाalafatet aigaar--Caesalpinia Bondacella. - विशेष विवरण-करंजा का पेड़ माली लोग बगीचे की दीवार पर रक्षा के लिए लगा दिया करते हैं / किंतु जंगलों में यह अपने आप पैदा होता है। इसका पेड़ लता के समान होता है / कई एकसाथ मिलकर गठ जाते हैं। इसके पत्ते सिरस के समान डाल के एक इधर और एक उधर होते हैं। फल कचौरी के
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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