________________ वनस्पति विज्ञान 176 और वमननाशक है / इसका फूल-शीतल, रस और पाक में मधुर, कफकारक, वातल, भारी और पित्तनाशक कहा गया है। गुण-प्रोक्ता क्षीरविदारी तु मधुराम्ला कषायका / वृष्या च शुक्रजननी पुष्टिदुग्धप्रदा कटुः // रसायनी च बल्या च शीता मूत्रकफप्रदा / स्निग्धा वर्ष्या गुरुः स्वर्या पित्तरुयक्तदोषहा // पित्तशूलहरा वातदाहजिन्मूत्रमेहजित् / ज्ञेया कंदविदारीस्तु याः सदृशा, वल्लिवद्गुणैः ॥–शा० नि० तीर विदारीकन्द-मीठा, खट्टा, कषैला, वृष्य, शुक्रजनक, पुष्टिकारक, दुग्धप्रद, कड़वा, रसायन, बल्य, शीतल, मूत्रल, कफकारक, चिकना, वये, भारी, स्वयं तथा पित्तविकार, रक्तदोष, पित्त, शूल, वात, दाह, मूत्र और प्रमेहनाशक है। इसीके समान विदारीकंद का गुण भी समझना चाहिए। विशेष उपयोग (1) बल और पुष्टि के लिए-विदारीकंद का एक तोला चूर्ण, घी के साथ खाकर ऊपर से दूध पीएँ / (2) दुग्ध वृद्धि के लिए-विदारीकंद दूध के साथ पीसकर तथा मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। (3) प्रमेह में-विदारीकंद के पत्ते के एक पाव रस में आँवला का छ: माशे चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए / (4) भस्मक रोग में-विदारीकंद का रस, दूध और घी मिलाकर पीना चाहिए।