________________ 175 विदारीकन्द कन्द का रंग लाली लिए होता है। यह दो प्रकार का होता है / उसका वृक्ष भी इसीके समान होता है। किन्तु उस दूसरे प्रकार वाले में कन्द, मूली के समान ही मोटा निकलता है / पहले वाली सादी होती है / लेकिन दूसरी से दूध निकलता है। दूसरे प्रकार का विदारी कन्द-क्षीरविदारी के नाम से प्रसिद्ध है और यह घोड़ों को खिलाई जाती है / प्रथम विदारी कन्द के पत्ते एक-एक शाखा में सात-सात निकलते हैं / किसी-किसी में आठ तक पाए जाते हैं। यह लाल और सफेद दो रंग का होता है। विदारी और क्षीरविदारी दोनों का शाक बनाया जाता है / इसके बारीक कंद को लड़के बड़े चाव से खाते हैं / इसके कंद का हलवा भी बनता है। यह औषध के लिए विशेष उपयोगी है। गुण -विदारी मधुरा शीता वृष्या स्निग्धा च पौष्टिका / धातुवृद्धिकरी बल्या कफदुग्धप्रदा गुरुः // रसायनी मूत्रला च स्वर्या रूक्षा च गर्भदा / पित्तवातहरा स्वादू रक्तरुग्दाहवान्तिहा // ज्ञेया ह्येते गुणाः कन्दे पुष्पं वृष्यं च शीतलम् / ... रसे पाके च मधुरं कफद्वातलं गुरु // पित्तनाशकरं . ह्येतदुक्तं मुनिवरैः पुरा।-शा० नि० विदारीकन्द-मधुर, शीतल, वृष्य, स्निग्ध, पौष्टिक, धातुवर्द्धक, वल्य, कफकारक, दुग्धप्रद, भारी, रसायन, मूत्रल, स्वर्य, रूखा, गर्भदायक, पित्त वातनाशक, स्वादिष्ट तथा रक्तविकार, दाह