________________ 157 मेदाशिंगी कान्ति, बल और अग्निवर्द्धक; कड़वी, पाचक, आयु को स्थिर करनेवाली, मङ्गलकारक, पित्तनाशक तथा विषदोष, अपस्मार, कफ, कृमि, विष, कुष्ठ, लूता, त्रिदोष, ग्रहवाधा और सम्पूर्ण उपद्रवों को शान्त करने वाली है। लाल और नीली का भी इसी के समान गुण है। विशेष उपयोग (1) उन्माद में-शंखाहुली के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए। (2) अपस्मार में-शंखाहुली के रस में काली मिर्च का चूर्ण और शहद मिलाकर पीना चाहिए। (3) वमन में-शंखाहुली के दो तोले रस में मिर्च का चूर्ण और शहद मिलाकर पीना चाहिए। (4) सन्निपातोदर में-शंखाहुली के पंचांग का रस और घी, एक साथ पकाया जाय, केवल घी शेष रहने पर छानकर पिलाया जाय। (5) दाह पर-शंखाहुली की पत्ती पीसकर लगाएँ। मेदाशिंगी ... सं० अजशृंगी, हि० मेढाशिंगी, ब० मेडाशिंगे, म० मेंडफली, गु० मडाशींगी, क० डरियमर, अ० बर्किस्त, अँ० स्क्रेवटी