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________________ जलपीपर 149 (3) गंडमाला में-बंदाल का बीज पीसकर उसका रस एक बूंद, और नर-मूत्र चार बूंद मिलाकर कानों में छोड़ना चाहिए / (4) रात में आनेवाला ज्वर-बंदाल की जड़ कान में बाँधनी चाहिए। . (5) पाण्डुरोग में-बंदाल के पंचांग का चूर्ण चार माशे, दूध अथवा जल के साथ एक मास तक सेवन करना चाहिए। (6) बवासीर पर-बंदाल की जड़ और सेंधानमक छाछ के साथ पीसकर लेप करना चाहिए। अथवा बंदाल के काढ़े से उसे धोना चाहिए। जलपीपर सं० जलपिप्पली, हि० जलपीपर, ब० काँचड़ाघास, म० जलपिंपली, गु० रतवेलियो, क० होमुगुलु, अ० फिलिफिलमाय, फा० पीपलावी, अँ० परपल लिपिया-Purple Lippia, और लै० लिपिया नेडिफ्लोरा-Lippia Nodifloro. - विशेष विवरण-जलपीपर का वृक्ष प्रायः सजलभूमि में पाया जाता है। इसका पत्ता कुल्फा के पत्ता के समान नोकदार होता है। इसमें भी पीपल के समान ही एक बाल निकलती है / गुण-जलपिप्पलिका हृद्या चक्षुष्या शुक्रला लघुः / संग्राहिणी हिमा रूझा रक्तदाहव्रणापहा // कटुपाकरसा रुच्या कषाया बहिवर्द्धिनी।-मा० प्र०
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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