________________ वनस्पति-विज्ञान 148 और लाल रंग के होते हैं। फलों के ऊपर बहुत छोटे-छोटे कॉटे होते हैं / इसका फल तुरई के समान होता है। जमीन में इसकी पुरानी लता के भीतर गाँठ-सी पड़ जाती हैं। फल के सूख जाने पर बीज निकालते समय उसके भीतर से रेशा और खुज्जा निकलता है। यह फल अत्यन्त कड़वा होता है / घोड़े के शरीर में कीड़े पड़ जाने पर इसे पीसकर पिलाया जाता है। यह दो-तीन प्रकार की होती है / इसके फल में पानी भरकर पीने से दस्त होते हैं। इसका रस ऊर्द्धश्वास में विशेष लाभदायक है / गुण -देवदाली रसे पाके तिक्ता तीक्ष्णा विषापहा / वामनी हन्ति गुदजकफशोफामकामलाः // ज्वरकासारुचिश्वासहिध्मापाण्डुक्षयकृमीन् / -रा० नि० बंदाल- रस और पाक के तिक्त; तीक्ष्ण; वमन कारक तथा विष, अर्श, कफ, शोथ, आम, कामला, ज्वर, कास, अरुचि, श्वास, हिचकी, पाण्डुरोग, क्षय और कृमिनाशक है। विशेष उपयोग (1) सर्प-विष में बंदाल-जल के साथ पीसकर तथा उस पानी को उससे अलग करके पिलाना चाहिए। विष की तीव्रता और शक्ति का विचार करके देना चाहिए / अधिक वमन होने पर घी पिलाना चाहिए / (2) कमला में-बंदाल की लता का रस नाकामें छोड़ना; अथवा इसके पंचांग का चूर्ण सुँघनी की तरह सुँघाना चाहिए। इससे पीले रङ्ग का स्राव होता है और रोग नष्ट हो जाता है।