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________________ वनस्पति-विज्ञान 150 जलपीपर-हृद्य, चक्षुष्य, शुक्रल, हलकी, ग्राही, शीतल, रूखी तथा रक्तविकार, दाह और बणनाशक एवं पाक और रस में कटु, रुचिकारक, कषैली और अग्निवर्द्धक है। विशेष उपयोग (1) आँख आने पर-जलपीपर और पुरानी इमिली पीस और गरम करके लेप करना चाहिए। (2) श्लीपद पर-जलपीपर पीस और गरम करके लगाना चाहिए। (3) दाह में जलपीपर की पत्ती पीसकर लगाएँ। मोरशिखा. सं० मयूरशिखा, हि० मोरशिखा, ब० मयूरशिखा, म० मयूरशिखा, गु० मोरशिखा, क० होरेयसू सुव, तै० मयूरशिखियने, फा० असनाने, और लै० सिलोसिया क्रिस्टाटा-Celosia Cristata विशेष विवरण-मोरशिखा का वृक्ष छोटा-छोटा होता है। यह प्रायः सूखी भूमि में उत्पन्न होता है। इसके पत्ते कंटीले होते हैं / पत्तों पर मोर की चोटी के समान चोटी होती है। इसीलिए / इसे मोरशिखा कहते हैं। कुछ लोग इसे लाजवती का ही भेद गानते हैं / इसका पेड़ प्रायः दो-तीन फिट लम्बा होता है / "गुण-नीलकंठशिखा लघ्वी पित्तश्लेष्मातिसारजित् / -भा० प्र०
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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