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________________ बनस्पति-विज्ञान 146 (11) त्वचारोग में-सनाय को रात के समय गोमूत्र में भिगोकर सुबह सुखाकर पुनः दस दिनों तक गोमूत्र की भावना देकर चर्ण बनाकर छः माशे से एक तोला तक, गरम पानी के साथ सेवन करना चाहिए। GHORI नागदौन सं० नागदमनी, हि० नागदौन, ब० नागदमना, म० नागदवणी, गु० नागडमण, क० नागदमनी, ता. माचिपत्री, तै० इश्वरिचेटुदरणमु, और लै० साइन ए० इण्डिया-Syn A. Indian. विशेष विवरण-नागदमन को ही कुछ लोग दौना भी कहते हैं। कुछ लोग इसे सुदर्शन भी कहते हैं। इसका वृक्ष अनन्नासजैसा होता है / इसका पत्ता बड़ा और सफेद रंग का होता है। इसके बीच में तीन हाथ लम्बा एक डण्ठल निकलता है / उस डंठल के ऊपर सफेद फूल निकलता है। इसमें एक प्रकार की विचित्र गंध भी होती है / कुछ लोगों का कथन है कि इसके पास सर्प नहीं जाता। गुण-बला मोटा कटुस्तिक्ता लघुः पित्तकफापहा / मूत्रकृच्छ्रव्रणान्रक्षो नाशयेज्जालगर्दभम् // सर्वग्रह प्रशमनी विशेष विषमाशिनी / जयं सर्वत्र कुरुते धनदा सुमतिप्रदा ॥-भा० प्र०
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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