________________ सनाय सं० मार्कण्डिका, हि० सनाय, ब० कांकरोलभेद, म० सोनामुखी, गु० मीठी आवल्य, क० तलाडवल्ली, तै० नेलतंघडी, अ० फा० सना, अँ० अलेग्जेंड्रियन सेना-Alexandrian Sena, और लै० सेनाफोलिया-Sennafolia. विशेष विवरण-सनाय की लता होती है। इसके पत्ते परवल के पत्ते के समान ; किन्तु छोटे होते हैं / फूल पीले रंग का होता है / पत्ते के भेद से यह दो-तीन प्रकार की होती है। लम्बे पत्ते वाली को सोनामुखी कहते हैं / यह जमीन पर लता की तरह फैलती है। यह रेचक है। इसकी जड़ कषैली, अग्निदीपक और पाक में स्वादिष्ट होती है / एक दूसरे प्रकार की भी होती है / इसके पत्ते और फूल, सफेद होते हैं / यह कषैली, खट्टी, शीतल, सारक, कड़वी तथा भेदक है / एवं पित्त, गुल्म, अतिसार आदि का नाश करती है / इसका फूल कान्तिकारक तथा मोहनाशक है। इसका फूल भी अनेक गुणों वाला होता है। गुण-मार्कण्डिका कुष्ठहरी उर्ध्वाधः कायशोधिनी / विषदुर्गन्धकासनी गुल्मोदरविनाशिनी ॥-भा० प्र० सनाय-कुष्ठनाशक; शरीर के नीचे और ऊपर को शुद्धकरने वाली तथा विष, दुर्गन्ध, कास, गुल्म और उदररोग नाशक है। विशेष उपयोग(१)विरेचन के लिए-सनाय की पत्ती