________________ वनस्पति-विज्ञान 142 सबसे ऊपरवाले डण्ठल में भी फूल निकलता है; किन्तु वह अन्य फूलों की अपेक्षा अधिक बड़ा होता है। उसके पुष्पकोश में चार पत्ते होते हैं। इस फूल का रङ्ग पोले कनेर की भाँति होता है / इसके बीच में किंजल्क कोश होता है, और उसके बीच में बीज होता है। उत्तम और बड़े वृक्षों में चालीस फूल तक अभी पाये गये हैं। आरोग्यशास्त्र की दृष्टि से यह झाड़ बड़े महत्व का है / जहाँ पर इसका वृक्ष रहता है, उसके आस-पास की वायु अत्यन्त शुद्ध होती है। अफ्रिका और यूरोप के अनेक स्थानों में जहाँ की वायु दूषित थी, इस वृक्ष के लगाने से विशुद्ध हो गई। इसके बीज का तेल विशेष उपयोगी है। इसका तेल घास के रङ्ग का होता है / खाने में स्वादिष्ट और पथ्यकारक होता है। इससे पूड़ी बनाई जाती है। इसमें किसी प्रकार की तीव्र गन्ध अथवा दुर्गन्ध नहीं होती / इसके साथ तला हुआ पदार्थ विशेष दिनों तक रह जाने से भी उसमें खराबी नहीं आती। इसका उपयोग रङ्ग बनाने तथा चित्रकारी के लिए अच्छा है / रूस में इसकी खेती विशेष रूप से होती है / रूसी लोग इसके तेल का व्यापार भी करते हैं। गुण-आदित्यभक्ता कटुका शीता तिक्तातिपित्तला / रूक्षा स्वाद्वी च की च कफवातव्रणापहा // शीतज्वरं भूतवाधां ग्रहपीडां विनाशयेत् / मेहं कृमींश्च कुष्ठं च त्वग्दोषं च विनाशयेत् ।।-नि र०