________________ 137 ___ हर-वर्षा ऋतु में लवण के साथ, शरद ऋतु मेंशर्करा के साथ, हेमन्त में-सोंठ के साथ, शिशिर ऋतु में-पीपल के साथ, वसन्त ऋतु में-शहद के साथ और ग्रीष्म ऋतु में-गुड़ के साथ सेवन करना चाहिए / रसायन गुणाभिलाषी व्यक्ति को प्रत्येक ऋतु में उपर्युक्त नियम से हरीतकी का सेवन करना चाहिए / विशेषता-शुक्त पथ्याऽभुक्ते पथ्या भुक्ताभुक्के पथ्यापथ्या / / ___ जीणे पथ्याऽजीणे पथ्या जीर्णाजीणे पथ्यापथ्या ॥–शा०नि० हरे-भोजन के उपरान्त और भोजन से पूर्व, दोनों समय में पथ्य है / जीर्ण और अजीर्ण में भी पथ्य है / नाम-रहस्य - हरस्य भवने जाता हरिता च स्वभावतः / हरेन्तु सर्वरोगांश्च तेन प्रोक्ता हरीतकी ॥--म० पा० नि० हर- महादेव के घर में उत्पन्न हुई, स्वभाव से हरी एवं सम्पूर्ण रोगों को हरने वाली है, इसलिए इसका नाम हरीतकी पड़ा। विशेष उपयोग (1) दमा और हिचकी में-हर्र और सोंठ का चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करना चाहिए / (2) पित्त से दुर्बलता होने पर--हर्र का छिलका दो माशे, शाम के समय गाय के दूध में भिगो दिया जाय, तथा सबेरे उसे पीसकर पी जाना चाहिए। इस प्रकार तीन-चार सप्ताह तक नियमित रूप से सेवन करने से लाभ होता है। दस्त अधिक होने पर घी-भात खाना चाहिए। (3) अम्लपित्त में हर्र और मुनक्का एक-एक तोला,