________________ वनस्पति-विज्ञान 136 रसों के गुण-आम्लभावाजयेद्वातं पित्तं मधुरतिक्तकः / / कफरूक्षकषायत्वात् त्रिदोषनी ततोभया ॥-शा नि० हरै-अम्लरस होने से वातनाशक, मधुर और तिक्त रस होने से पित्तनाशक तथा रूखी और कषैली होने से कफ नाशक है / इस प्रकार यह त्रिदोष नाशक है / गुण-पथ्याया मजनि स्वादुः नावामम्लो व्यवस्थितः / वृन्ते तिक्तस्त्वचि कटुरस्थिस्थस्तुवरो रसः ॥–शा० नि० हर की गुठली में मधुर रस / नसों में-अम्लरस / डंठल में-तिक्तरस / छाल में-कटुरस; और अस्थि मेंकषैला रस निवास करता है। . गुण-चर्विता वर्द्धयत्यग्नि पेषिता मलशोधिनी / स्विना संग्राहिणी पथ्या भृष्टा प्रोक्ता त्रिदोषनुत् ॥–शा० नि० हरी-दाँतों से चबाकर खाने से अग्नि को बढ़ाती है / पीसकर खाने से मल को शुद्ध करती है। सेंककर खाने से मल को रोकती है ; और भूनकर खाने से तीनों दोषों को नष्ट करती है। गुण-लवणेन कर्फ हन्ति पित्तं हन्ति सशर्करा / ___ घृतेन वातजारोगान्सर्वरोगान्गुदान्विता // -0 नि० हर्र-लवण के साथ कफ को, शर्करा के साथ पित्त को, घृत के साथ वायु को और गुड़ के साथ सबरोगों को नष्ट करती है। गुण-सिन्धूत्थशर्कराशुंठीकणामधुगुडै क्रमात् / वर्षादिष्वभया प्राश्या रसायनगुणैषिणा ॥-भा० प्र०