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________________ सं० हरीतकी, हि० हर्र, ब० हरीतकी, म० हरडा, गु० हरडे, क० अणिलेय, ता० कडकै, तै० करकायि, अ० अहलीज, फा० हलैले, अँ मेरोबेलेन्स -Myrobalans, और लै० ब्लैकमाइरोनेलन्स-Black Myronelans. विशेष विवरण--हर्र का पेड़ बड़ा होता है। यह पञ्जाब और काबुल आदि में विशेष होती है। इसके पत्ते अडूसे के पत्ते के समान होते हैं / इसका फूल महीन आम की बौर के समान होता है। इसकी अनेक जातियाँ होती हैं। इसके फल की छाल छः माशे की मात्रा में व्यवहार की जाती है। एक जाति का कोंकण और गुजरात में होता है। यह रंग के काम में लाया जाता है। कच्ची अवस्था में तोड़ी हुई को बालहरै कहते हैं। दूसरी लम्बी वजनदार और जल में डूबनेवाली होती है / इसका वजन दो तोले तक होता है / यह अधिक उत्तम गुणवाली होती है। किन्तु यह सात प्रकार की होती है / हर अनेक रोगों के लिए हितकारी है। विजया अनेक रोगों पर उपयोगी है। रोहिणी व्रणरोपक है। पूतना लेप के लिए उत्तम है / अमृता विरेचन के लिए अत्युत्तम है। अभया नेत्र रोग के लिए और चेतकी चूर्ण बनाने के लिए उत्तम है। चेतकी सफेद और काली दो प्रकार की होती है। सफेद छः अंगुल तक लम्बी होती है। कोई खाने से, कोई सूंघने से, कोई
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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