________________ 133 वायविडंग अंगुल चौड़ा होता है / इसके वृक्ष के ऊपर फल के गुच्छे लगते हैं। इसीको वायविडंग कहते हैं। यह विशेष करके कृमिनाशक है। गुण-बिडगं कटुकं तिक्तमुष्णं रुच्यं लघु स्मृतम् / दीपनं वातकफहृदग्निमांद्यारुचीर्जयेत् // भ्रान्ति कृमि च शूलं च आध्मानमुदरं तथा / प्लीहाजीणे श्वासकासौ हृद्रोगं विषदोषकम् // आमं मलावष्टम्भं च मेदो मेहं च नाशयेत् ।-नि० र० वायविडंग-कड़वी, तीती, उष्ण, रुचिकारक, हलकी, दीपक तथा वात, कफ, हृद्रोग, अग्निमांद्य, अरुचि, भ्रान्ति, कृमि, शूल, आध्मान, उदररोग, प्लीह, अजीर्ण, श्वास, कास, हृद्रोग, विषदोष, आम, मलस्तम्भ, मेदरोग और प्रमेह नाशक है / विशेष उपयोग (1) कृमि में वायविडंग का चूर्ण शहद के साथ सेवन करना चाहिए। (2) अरुचि और ज्वर में-शहद के साथ वायविडंग को गोली बनाकर मुख में रखना चाहिए। (3) हृद्रोग में वायविडंग और कुलिंजन का चूर्ण गोमुत्र के साथ सेवन करना चाहिए / (4) मल-शुद्धि में-वायविडंग और अजवाइन का चूर्ण गरम पानी से साथ सेवन करना चाहिए /