________________ स्वस्पति-विज्ञान 132 गुण-द्रोणपुष्पीदलं स्वादु रुक्षं गुरु च पित्तकृत् / भेदनं कामलाशोथमेहज्वरहरं कटु ॥-भा० प्र० . गूमा की पत्ती-स्वादिष्ट, रूखी, भारी, पित्तकारक, भेदक, कड़वी तथा कामला, शोथ, प्रमेह और ज्वर नाशक है। ... विशेष उपयोग ( 1 ) विषमज्वर में-गूमा के पत्ते के रस में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए / (2) वायुरोग में-गूमा के रस में शहद मिलाकर पीएँ। (3) चौथिया ज्वर में-गूमा के रस का अंजन करें। (4) शोथ पर-गूमा और नीम की पत्ती उबालकर भाप लेना चाहिए। (5) आधाशीशी में- गूमा का रस नाक में डालें। वायविडंग सं० कृमिघ्न, हि० वायविडंग, ब० विडंग, म० वावडिंग, गु० वावढींग, क० वायुविडंग, ता० वायबिलं, तै० वायुविडवमु, फा० वरंगकावली, अ० बरंजकावली, ॲ० बेळग-Babreng, और लै० ऍब्रेलिया रिबीस-Emdrela Ribes. विशेष विवरण-वायविडंग का पेड़ पाँच से आठ फिट तक ऊँचा होता है / इसका पत्ता पाँच अंगुल लम्बा तथा तीन