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________________ 131 गूमा (6) ज्वर में ब्राह्मी का रस और शहद मिलाकर पीना चाहिए। (7) प्रमेह में ब्राह्मी के रस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए। गूमा सं० द्रोणपुष्पी, हि० गूमा, ब० द्रोणपुष्पी, म० कुम्भा, गु० कुबो, क० तुम्ब, तै० लतुगतुम्मि, और लै० ल्युकास सिफेलोटस्Leucas Cephalotus. विशेष विवरण-इसका पेड़ होता है / इसकी प्रत्येक गाँठ में सफेद फूलों के गुच्छे होते हैं। प्रत्येक फूल के ऊपर दो-दो पत्ते होते हैं। इसके भीतर बीज होते हैं / इसके पत्ते-लम्बे और पतले होते हैं / इसका पेड़ प्रायः ऊसरों और खंडहरों में पाया जाता है। वात के लिए यह विशेष लाभदायक है। गुण-द्रोणपुष्पी गुरुः स्वाद्वी रूक्षोष्णा वातपित्तकृत् / सतीक्ष्णा लवणा स्वादुपाका कट्वी च भेदिनी // ___कफामकामलाशोथतमकश्वासजन्तुजित् ।-भा० प्र० गूमा-भारी, स्वादिष्ट, रूखी, उष्ण, वात-पित्त कारक, तीक्ष्ण, नमकीन, पाक में स्वादिष्ट, कड़वी, भेदक तथा कफ, आम, कामला, शोथ, तमकश्वास और कृमि नाशक है /
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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