________________ 129 ब्राह्मा ब्रायो (4) कामला में कलियारी के पत्ते का चूर्ण, मट्ठा के साथ सेवन करना चाहिए। (5) योनिशूल और पुष्पावरोध में कलियारी का कंद योनि में रखना चाहिए। (6) कानों में कृमि जाने पर-कलियारी के कंद, का रस छोड़ना चाहिए। (7) सर्प के काटने पर-कलियारी का कंद पानी में घिसकर नस्य लेना चाहिए। (8) सूजन और गाँठ पर-कलियारी का कंद पीसकर बाँधना चाहिए। . ब्राह्मी सं० हि० म० गु० ब्राह्मी, ब० ब्रह्मीशाक, क० औदेलग, ता० वीमी, तै शम्बनी चेटु, फा० जरनव, अॅ० इंडियन पेनी वर्टIndian Penny Wort, और लै० हाइड्रोकोटाइल एश्याटिकाHydro Cotyle Assiatica. विशेष विवरण-इसका वृक्ष छत्ता-सा प्रायः सजलभूमि, जलाशय अथवा पार्वत्य प्रदेश में होता है। इसके पत्ते छोटे-छोटे, गोल-गोल, खिले हुए तथा चारों ओर कटे रहते हैं / इसकी दूसरी जाति ब्रह्ममण्डूकी कही जाती है / इसके पत्ते उससे छोटे होते हैं।