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________________ वनस्पति-विज्ञान 128 की जड़ केले की जड़ की तरह होती है / यह गर्मी में बहुधा सूख जाता है / इसके फूल बहुत सुन्दर दीख पड़ते हैं, तथा रंग-बिरंगे होते हैं / इसकी कन्द विषैली होती है। गुण-कलिकारी सरा तिक्ता कटी पटी च पिचला / तीक्ष्णोष्णा तुवरा लवी कफवातकृमिप्रणुत् // वस्तिशूलं विषं चाशः कुष्टं कण्डूं व्रणं तथा / शोथं शोषं च शूलं च नाशयेदिति कीर्तिता // शुष्कगर्भ च गर्भ च पातयेदिति कीर्तिता ।-नि० र० कलियारी-सारक, तीती, कड़वी, खारी, पित्तल, तीक्ष्ण, उष्ण, कषैली, हलकी तथा कफ, वात, कृमि, वस्तिशूल, विष, अर्श, कुष्ठ, खुजली, व्रण, शोथ, शोष और शल नाशक है / एवं शुष्कगर्भ और गर्भ का पात कराती है। विशेष उपयोग (1) गण्डमाला पर-कलियारी का कंद घिसकर लेप करना चाहिए। (2) शीघ्रप्रसव के लिए-कलियारी के कंद को पानी में घिसकर अपने हाथ में लगाकर प्रसव होने वाली स्त्री के हाथ को पकड़ना चाहिए। इससे शीघ्र प्रसव हो जाता है। अथवा उस स्त्री के हाथ-पैर में इस कंद को बाँधना चाहिए। (3) पशु की योनि बाहर निकले तो-कलियारी का कंद हाथ से मसलकर उसके पास ले जाय / यदि किसी समय वह भीतर न जाय तो दोनों हाथों से भीतर को दबा दे।
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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