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________________ 127 कलियारी (2) रक्तातीसार पर--दुधिया के पत्ते का रस, मिश्री और घी एक-एक तोला मिलाकर चार-पाँच दिनों तक पिलाएँ। (3) विषमज्वर पर-दुधिया की जड़ कान में रखें। (4) बच्चों के उदर-विकार पर-दुधिया की जड़ ढंढ़े पानी में घिसकर एक तोला तक प्रतिदिन पिलाना चाहिए / (5) सूजाक में-दुधिया को पीसकर पीना चाहिए / कलियारी सं० कलिकारी, हि० कलियारी, ब० लांगला, म० कललावी, गु० कलगारी, क० राडागारी, अँ बुल्फसबेन-Wolfsbane, और लै० ग्लोरीओजा सुपर्वा-Gloriasa Superba. विशेष विवरण-कलियारी लांगलीकन्द को कहते हैं / इसकी जड़ में हल्दी की भाँति मोटी-मोटी गाँठे निकलती हैं। ऊपर लँगूर की पूँछ के समान एकही लगर-सी निकलती है / उसमें कचूर-जैसे पत्र निकलते हैं। ऊपर लाल और पीला अग्नि की लपट के समान फल होता है / इसी को लांगलीकन्द या कलियारो कहते हैं / सुखपूर्वक प्रसव होने के लिए इसका कंद स्त्री के हाथों में बाँध देते हैं / पहाड़ी प्रान्तों में यह विशेष पाया जाता है। इसका पौधा घास के रूप में निकलकर लता के रूप में फैलता है। यह बहुधा बड़ के आश्रय में फैलता है। इसके पुराने पौधों
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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