________________ 121 आँवला (4) अशुद्ध अभ्रक के विष पर-आँवला का रस पीना चाहिए। (5) वमन और श्वास पर-आँवला का रस, शहद और छोटी पीपर सेवन करना चाहिए / (6) रक्तपित्त पर-आँवला की गुद्दी, रेडी के तेल में भूनकर तथा मिश्री मिलाकर गरम पानी के साथ खाना चाहिए / (7) प्रमेह में-आँवला का रस अथवा उसके काढ़े में दो माशे हल्दी का चूर्ण और शहद मिलाकर सेवन करना चाहिए। (8) बद्धकोष्ठता में-आँवला की गिरी पीसकर शरीर पर लगाना चाहिए / प्रतिदिन ऐसा करने से कोष्ठबद्धता दूर हो जाती है / इससे बाल भी काले हो जाते हैं। (8) आँख की जलन पर-आँवला को गुद्दी और काला तिल रात के समय पानी में भिगो दिया जाय, और प्रातःकाल पीसकर सिर और आँख पर लगाया जाय / एक घंटा बाद धोकर स्नान करना चाहिए। (10.) ज्वर से मुख की विरसता होने पर-आँवला की गुद्दी, मुनक्का और मिश्री को पीसकर उसकी गोली मुख में रखकर चूसनी चाहिए। (11) मूत्रकृच्छ में आँवला और ईख का रस पीएँ। ...(12) नाक से रक्त गिरने पर-आँवला, घी में भूनकर और कॉजी के साथ पीसकर मस्तक पर लेप करना चाहिए /