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________________ वनस्पति-विज्ञान 120 गुण-आमलस्य फलं शुष्कं तिक्तमम् कटु स्मृतम् / मधुरं तुवर केश्यं भन्मसन्धानकारकम् // धातुवृद्धिकरं नत्र्यं लेपनात्कान्तिकारकम् / पित्तं कर्फ तृषां धर्म मेदोरोगं विषं तथा // त्रिदोषं नाशयत्येवं पूर्वाचायनिरूपितम् / -नि० र० - सूखा आँवला-तीता, खट्टा, मधुर, कषैला, बालों को हितकर, टूटे को जोड़ने वाला, धातुवर्द्धक, नेत्रों को हितकारी, लेप करने से कान्ति को बढ़ाने वाला तथा पित्त, कफ, तृषा, स्वेद, मेदरोग, विष और त्रिदोषनाशक है / गुण-तन्मजा प्रदरच्छर्दिवातपित्तज्वरापहा / कषाया मधुरा वृष्या श्वासकासनिवर्हणा ॥–शा० नि० आँवला की गिरी-कषैली, मधुर, वृष्य तथा प्रदर, छर्दैि, वात, पित्त, ज्वर, श्वास और कास नाशक है। विशेष उपयोग (1) सब प्रकार के ज्वरों परआँवला की गुद्दी, चित्रक की जड़, छोटी हरं, पीपर और सेंधानमक का समान भाग चूर्ण बनाकर; अथवा काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए। (2) पित्त पर-आँवला का मुरब्बा सेवन करना चाहिए। (3) स्वरभंग में-आँवला का चूर्ण गाय के दूध के साथ सेवन करना चाहिए।
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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