________________ सं० दूर्वा, हि० दूब, ब० दूर्वा, म० दूर्वा, गु० थ्रो, क. हसुगरुके, ता० अरुमगम पुल्लु, तै० दूर्वालु , अँ० क्रीपिंग साइनोडन-Creeping Cynodon, और लै० साइनोडन डेकटिलन्-Cynodon Dactylon, ___ विशेष विवरण-दूब एक तृण-जाति का है। यह हरे रंग की अत्यन्त मनोहर होती है / इसमें यह एक विचित्र शक्ति है कि जब सब वनस्पतियाँ सूख जाती हैं, उस समय भी यह हरी रहती है / अकाल में पशुओं को यह जीवन दान देती है; क्योंकि उस समय सम्पूर्ण वृक्ष सूख जाते हैं; किन्तु इसकी जड़ हरी-ही रहती है। अकाल के समय इसकी जड़ पशुओं के खाने के काम आती है। गणपति पूजन के लिए तो इसकी नितान्त आवश्यकता है / यह कई प्रकार की होती है। हरी दूब मैदानों और जंगलों में बहुतायत से पाई जाती है। यों तो जमीन पर लता-जैसी सब जगह फैली दीख पड़ती है / इसकी गाँठ जमीन में पड़ जाने मात्र से पुनः उसकी जड़ जमने लगती है / इसे दूब का नाल कहते हैं। यह ऊपर नहीं उठती; बल्कि जमीन ही पर छत्ते-सी फैलती है / पत्ते नालों पर छोटे-छोटे और लम्बे-लम्बे होते हैं। इसकी नाल सब जगह फैलती चली जाती है। यह सब जगह सरलता से पाई जाती है।