________________ बनस्पति-विज्ञान (12) त्रिदोषज मूत्रकृच्छ पर-सतावर का काढ़ा, मिश्री और शहद मिलाकर पीना चाहिए। . (13) अम्लपित्त में-सतावर का घृत सेवन करें। .. (14) वातपित्त और रक्तपित्त में-सतावर पीसकर और पकाकर चौंसठ तोले दूध और घी मिलाकर सेवन करना चाहिए। (15) तृषा, मूर्छा, श्वास और संताप में-सतावर का घृत और सतावर का कल्क सेवन करना चाहिए। (16) प्रमेह-सतावर के रस में दूध मिलाकर पीएँ। . (17) चेचक में सतावर का काढ़ा पीना चाहिए / (18) सब प्रकार के प्रमेहों पर-सतावर और आँवला के रस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए। (16) उन्माद में-संतावर का घृत सेवन करना चाहिए। (20) हिस्टीरिया रोग में सतावर का घृत दूध में मिलाकर पीना चाहिए। (21) वन्ध्यात्व-अधिक दिनों तक सतावर का घृत सेवन करने से दूर हो जाता है /