________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक*८६ स च सप्रतिपक्षोऽत्र कश्चिदुक्तः परैः पुनः / अनैकान्तिक एवेति ततो नास्य विभिन्नता // 69 // स्वेष्टधर्मविहीनत्वे हेतुनान्येन साध्यते। साध्याभावे प्रयुक्तस्य हेतो भावनिश्चयः // 7 // धर्मिणीति स्वयंसाध्यासाध्ययोवृत्तिसंश्रयात्। नानैकान्तिकता बाध्या तस्य तल्लक्षणान्वयात्॥७१॥ यः स्वपक्षविपक्षान्यतरवादः स्वनादिषु / नित्यत्वे भंगुरत्वे वा प्रोक्तः प्रकरणे समः // 72 // सोऽप्यनैकान्तिकान्नान्य इत्यनेनैव कीर्तितम्। स्वसाध्येऽसति सम्भूति: संशयासविशेषतः // 73 // कालात्ययापदिष्टोऽपि साध्यमानेन बाधिते / यः प्रयुज्येत हेतुः स्यात्स नो नैकान्तिकोऽपरः // 74 // साध्याभावे प्रवृत्तो हि प्रमाणैः कुत्रचित्स्वयम्। साध्ये हेतुर्न निर्णीतो विपक्षविनिवर्त्तनः // 75 // अनैकान्तिक हेत्वाभास से इस सत्प्रतिपक्ष का कोई विशेष भेद नहीं है। दूसरे हेतु के द्वारा अपने अभीष्ट साध्य धर्म से रहितपना साधा जाने पर साध्य वाले धर्मी में साध्य के अभाव को साधने में प्रयुक्त किये गये हेतु के अभाव का निश्चय नहीं है। क्योंकि स्वयं वादी ने साध्य और साध्याभाव के होने पर हेतु के रहने को समीचीन आश्रय कहा। अत: सत्प्रतिपक्ष कहलाने वाले हेतु को अनैकान्तिक हेत्वाभासपना बाधा करने योग्य नहीं है। क्योंकि उस अनैकान्तिक का लक्षण वहाँ अन्वय रूप से घटित हो जाता है॥६७-६८-६९७०-७१॥ शब्द, घट, आदि में नित्यपना अथवा क्षणिकपना साधने पर जो स्वपक्ष और विपक्ष में से किसी भी एक में रहने वाला (हेतु) प्रकरणसम कहा गया है वह भी अनैकान्तिक से भिन्न नहीं है। इस प्रकार का सिद्धान्त भी उक्त हेतु से ही कह दिया गया है अर्थात् जिस हेतु से साध्यवान और साध्याभाववान के प्रकरण की जिज्ञासा होती है, उस जिज्ञासा का निर्णय करने के लिए प्रयुक्त किया गया हेतु प्रकरणसम कहा जाता है। शब्द को नित्यपना साधने में मीमांसकों के द्वारा दिया गया प्रत्यभिज्ञायमानपना हेतु नैयायिकों की ओर से प्रकरण सम हेत्वाभास है। और शब्द का अनित्यपना साधने में नैयायिकों के द्वारा दिया गया कृतकत्व हेतु तो मीमांसकों की ओर से प्रकरणसम कहा जाता है। किन्तु यह प्रकरणसम अनैकान्तिक हेत्वाभास से पृथक् नहीं है। अत्यल्प भेद होने से हेत्वाभास की कोई पृथक् जाति नहीं हो जाती है। अपने साध्य के नहीं होने पर विद्यमान रहना यह निश्चित व्यभिचार और संशयांश रूप है क्योंकि व्यभिचारका यहाँ भी सद्भाव है। किसी अंश में विशेषता नहीं है // 72-73 / / जो हेतु प्रमाणद्वारा साध्य के बाधित हो जाने पर प्रयुक्त किया जाता है, वह कालात्ययापदिष्ट हेतु भी स्याद्वाद में दूसरे प्रकार का अनैकान्तिक हेत्वाभास माना गया है। बाधित हेत्वाभास कोई पृथक् नहीं है। कहीं-कहीं तो स्वयं प्रमाणों के द्वारा साध्य का अभाव ज्ञात हो जाने पर पुन: वह हेतु प्रवृत्त होता है और कहीं साध्य के होने पर हेतु का निर्णय हो जाता है। किन्तु उस हेतु के विपक्ष से निवृत्त होने का निर्णय नहीं है। अतः बाधित और अनैकान्तिक में थोडा सा अन्तर है, विशेष नहीं है॥७४-७५ / /