________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 20 मतिश्रुते समाख्याते निबन्धो नियम: स्थितः। द्रव्याणि वक्ष्यमाणानि पर्यायाश्च प्रपंचतः॥२॥ ततो मतिश्रुतयोः प्रपंचेन व्याख्यातयोर्वक्ष्यमाणेषु द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु निबन्धो नियमो प्रत्येतव्य इति सूत्रार्थो व्यवतिष्ठते। विषयेष्वित्यनुक्तं कथमत्रावगम्यत इत्याह पूर्वसूत्रोदितश्चात्र वर्त्तते विषयध्वनिः। केवलोऽर्थाद्विशुद्ध्यादिसहयोगं श्रयन्नपि // 3 // विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनःपर्यययोरित्यस्मात्सूत्रात्तद्विषयशब्दोऽत्रानुवर्तते। कथं स विशुद्ध्यादिभिः सहयोगमाश्रयन्नपि केवल: शक्योऽनुवर्तयितुं? सामर्थ्यात् / तथाहि-न तावद्विशुद्धेरनुवर्तनसामर्थ्य प्रयोजनाभावात्, तत एव न क्षेत्रस्य स्वामिनो वा सूत्रसामर्थ्याभावात्। नन्वेवं द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु निबन्धन मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का वर्णन पूर्व में कर दिया है और निबन्ध का अर्थ यहाँ नियम (विषय) ऐसा व्यवस्थित किया है। द्रव्यों का परिभाषण आगे पाँचवें अध्याय में करेंगे तथा पर्यायें भी विस्तार के साथ कहेंगे। अर्थात् - मतिज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम होने पर इन्द्रिय और मन:स्वरूप निमित्तों से अभिमुख नियमित पदार्थों को जानने वाला ज्ञान मतिज्ञान है। श्रुतज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम होने पर जो सुना जाय यानी अर्थ से अर्थान्तर को जानने वाला, मतिपूर्वक परोक्षज्ञान श्रुतज्ञान है। मति, श्रुत का विवरण पूर्व में कह दिया है। निबन्ध का अर्थ नियत करना या मर्यादा में बाँध देना है। छह द्रव्यों का कथन आगे करेंगे॥२॥ अत: इस सूत्र का अर्थ इस प्रकार व्यवस्थित हो जाता है कि विस्तार के साथ व्याख्यान किये गए मतिज्ञान श्रुतज्ञानों का भविष्य ग्रन्थ में कहे जाने वाले विषयभूत सम्पूर्ण द्रव्यों में और असम्पूर्ण (कतिपय) पर्यायों में निबन्ध (नियम) समझ लेना चाहिए अर्थात् मति श्रुतज्ञान सर्वद्रव्य और उनकी कुछ पर्यायों को जानते हैं। इस सूत्र में “विषयेषु" यह शब्द नहीं कहा है तो फिर अनुक्त यह शब्द किस प्रकार समझ लिया जाता है? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य कहते हैं - इस सूत्र के पूर्ववर्ती "विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमन:पर्यययोः" सूत्र में कथित विषय शब्द यहाँ अनुवर्तन कर लिया जाता है। यद्यपि वह विषय शब्द “विशुद्धि, क्षेत्र' आदि के साथ सम्बन्ध को प्राप्त है, तो भी प्रयोजन होने से विशुद्धि आदिक और पंचमी विभक्ति से रहित होकर केवल विषय शब्द की ही अनुवृत्ति कर ली जाती है॥३॥ “विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनः पर्यययोः" इस सूत्र से विषय शब्द यहाँ अनुवृत्ति करने योग्य है। प्रश्न - विशुद्धि, क्षेत्र आदि के साथ सम्बन्ध का आश्रय होने पर भी विषय शब्द केवल अकेला ही कैसे अनुवर्तित किया जा सकता है? उत्तर - पहिले पीछे के पदों और वाच्य अर्थ की सामर्थ्य से केवल विषय शब्द अनुवर्तनीय हो जाता है। इसी बात को स्पष्ट रूप से दिखलाते हैं, कि सबसे प्रथम कही गई विशुद्धि की अनुवृत्ति करने